पेज का नाम स्वतंत्र क्यो??

तो किस्सा 1919 का है दोस्तों। आप जानते है, इस समय महावीर सावरकर ने जबरदस्त माफी क्रांति की थी। एक के बाद एक, दनादन टॉमहॉकमाफी मिसाइल छोड़ रहे थे। 

अंग्रेजो का मनोबल टूट गया था। विक्टोरिया माता, चरणों मे गिरते माफीबमों से सहम चुकी थी। 
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ऐसे मौके का फायदा उठाकर, एक साधारण अपढ़ नेता, जिन्होने लंदन से बार एट लॉ, बैरिस्टरी और एटोर्नी नही की थी, और जो बाम्बे और लन्दन बार क्लब के मेम्बर भी नही थे, उन्होने असहयोग आंदोलन छेड़ दिया। 

बड़े बड़े जब पेंशन के ख्वाब देख रहे थे ..

बच्चा बच्चा उस आंदोलन मे कूद पड़ा।  एक बच्चा बनारस मे भी पकड़ा गया। जोर जोर से नारे लगा रहा था। पुलिस पकड़ ले गई। कोर्ट मे पेश किया गया। 

- जज ने पूछा- तेरा नाम बता 
- आजाद ...
- बाप का नाम ??
- स्वतंत्र ..
- पता ??
- जेलखाना !!

मजिस्ट्रेट को गुस्सा आया। लेकिन आरोपी माइनर था। 15 डण्डे मारे गए। हर नारे के साथ वो नारा लगाता

- भारत माता की जय 
- महात्मा गांधी की जय 

अफसोस, उसने माफीवीर की जय एक बार भी नही कहा, 
वामपंथी रहा होगा। 

खैर, तो वो बच्चा आगे लेजेण्ड बना। भगतसिंह, सुख्रदेव, राजगुरू, यशपाल, अशफाक और जोगेश चंद्र जैसे वीरो का कंपनी कमांडर। नाम था चंद्रशेखर तिवारी .. 

हम यूपी वालों की आन बान शान। 
क्योकि तब यूपी गोबरपट्टी था, गोबरमति न था।  
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तो डण्डे खाकर जो गांधी की जय कहे, वही आजाद है। जिसकी पीठ पर बरसते कोड़े, उसकी जुबान को ताकत दें, वो आजाद है, वही स्वतंत्र है। 

जलीले इलाही की जुल्मतों के दौर मे, कोड़ों की परवाह किये बगैर, आप और मै दिल की सुनेंगे, लिखेंगे, बोलेंगे, डिस्कस करेंगे। अहसास करेंगे कि जब तक मन आजाद है, जुबान आजाद है, तब तक हम सारे स्वतंत्र है। 
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मेरा विश्वास है कि फेसबुक के बाजार की मेरी गली मे, स्वतंत्रमना जीवों का जमघट है। इसलिए, डियर, इस दीवार, चौखट, 

.. इस पन्ने का नाम स्वतंत्र है।