.भले ही आप किसी पार्टी विशेष, व्यक्ति के अंध समर्थक, या अंधभक्त ही क्यों ना हो,वह सब अपनी जगह है.. तय मानिए Manish Singh Reborn  की यह ज्ञानवर्धक पोस्ट, आपको मानसिक विकास क्रम में, दूसरों से आगे रहने में मदद करेगी...
~~~

"पोस्ट नही, यह असल मे लल्लनटॉप का एक आर्टिकल है, जो कुछ साल पहले मैनें पढ़ा था। फैलासी, या fallacy याने झूठ और सच का एक ऐसा केमोफ्लेज, जिसे जानना आपके लिए बेहद जरूरी है। 

कई मित्रों को लगता है कि मैं कई बार अनावश्यक ही एग्रेसिव होकर रिएक्ट करता हूँ। दरअसल जब से fallacy पहचानने लगा हूँ, सीधे जुतिया कर भगाता हूँ। 

इसे आप भी समझें।
~~~
Fallacy क्या है? 

बहस करते वक्त अतार्किक बातें करना और उससे कुछ भी निष्कर्ष निकाल लेना फॉलसी है. जैसे कि –

"‘कल तुमने मुझसे दो रूपये लिए, और आज दो रूपये फिर ले लिए है। कुल योग दस हुआ, तो कल तुम मुझे दस रूपये लौटाओगे" 

इस बात में आपको मालूम है कि क्या अतार्किक है। लेकिन हर बार फॉलसी को पहचानना इतना आसान नहीं होता। क्यूंकि हर बार ये फॉलसी ‘दो और दो, दस’ जैसी आसानी से पकड़ में नहीं आती. 
~~~
5 तरह की फॉलसी बहुत कॉमन यूज होती है। क्रम से समझिए। 
~~~~
1- नो ट्रू स्कॉट्समैन फॉलसी :

◆धर्म के लिए हथियार न उठाए, वो सच्चा मुसलमान नहीं
◆जिसे पाकिस्तान से नफरत नही, देशभक्त या हिन्दू नही
◆सच्चे राष्ट्रभक्त हो तो पढ़ते ही शेयर करो 

याने तर्क देने वाला एक कंडीशन रख देता है, जो अगर आप पूरी न करें, तो वह आपकी हिन्दू, मुसलमान, भारतीय या स्कॉटिश होने की मान्यता को रदद् कर देगा। 

इसका दूसरा स्वरूप देखिए। कल्पना कीजिए कि एक भारतीय, खबर पढ़ रहा है – ‘पाकिस्तान में एक यौन-कुंठित व्यक्ति ने लड़कियों पर हमला किया। 

वो लेख देखकर चौंकता है और कहता है कि – ‘कोई हिंदुस्तानी कभी ऐसा नहीं करेगा.’

लेकिन अगले दिन वो पढ़ता है – ‘दिल्ली में एक यौन-कुंठित व्यक्ति ने लड़कियों पर हमला किया.’

अब वो इस बात को तो मानेगा नहीं कि कल जो उसने कहा था वो गलत था. इसलिए इस बार वो कहता है – कोई "सच्चा" हिंदुस्तानी ऐसा नहीं करेगा। 

याने सच्चा हिन्दू, मुसलमान, इंडियन या स्कॉटिश होने की परिभाषा, उसके सर्टिफिकेट पाने के शर्ते रोज बदल रही हैं। उसके पास यह पावर आ गयी है, की वह शर्ते लादेगा। आपको मानना पड़ेगा, वरना हिंदुत्व खत्म, इस्लाम नष्ट। आप गद्दार हो जाओगे। 

तो यह पावर कहाँ से आई? 

इसलिए कि आप उससे "बात कर रहे हो"। आप जवाब दे रहे हो। खुद को हिन्दू, इस्लामी, भारतीय या स्कॉटिश साबित करने में लगें हो। 

वो मानेगा ही क्यो? 
वो तो सहारा ही फाल्सी का ले रहा है
वो तय करके आया है कि आपको झूठ से घेरेगा। 
~~~
2- एड होमिनेम फॉलसी

◆ पुरुष होकर महिला हितों की बात कर रहे हो, तुम नारीवादी नहीं ‘फर्ज़ी नाड़ीवादी’ हो’
◆ जो लोग ए.सी. रूम में बैठकर पॉलिसी बनाते हैं वो मज़दूरों के लिए कुछ अच्छा करेंगे, ये सोचना भी ग़लत है

एड होमिनेम याने याने सब्जेक्ट छोड़कर आदमी पर चले जाना, और उस आदमी को डिस्क्रेडिट करना। 

अब यदि कोई हिमाचली ग्लोबल वार्मिंग पर चिंता व्यक्त करे, तो आप कहें की उसे क्या मलतब है?  वह तो ठंडे प्रदेश में है? तू पक्का खान्ग्रेसी है, चमचा है, वामपंथी है। 

एड होमोनिम एक लैटिन शब्द है. इसमें ‘होमो’ का अर्थ व्यक्ति है। याने एड होमोनिम का अर्थ बहुत हद तक – ‘व्यक्तिगत’ होता है। तर्क को काटने की जगह तर्क देने वाले को काटना एड होमोनिम है। 

इस फॉलसी की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि हमको दिए गए तर्कों से फर्क ही नहीं पड़ता। वह तथ्य ग्रेविटी की तरह सर्वमान्य क्यों न हो, आपका विपक्षी इंकार कर देगा। क्यूंकि उनको कहने वाला आदमी ही। ग़लत है!

तो क्या करें। खुद के क्रेडेंशियल गिनाएंगे?
अरे, जुतिया के भगाइये। 
सिंपल
~~~~~~~~~
3- स्ट्रॉमैन फॉलसी

स्ट्रॉ मैन, याने घास का आदमी, जो चिड़िया भगाने को खेतों में खड़ा किया जाता है। आप एक चीज़ को लेकर बहस कर रहे हैं और दूसरा बंदा एक पुतला खड़ा कर, बहस का रुख बड़ी सफाई से दूसरी तरफ मोड़ देता है। 

जैसे मैं कहूँ- मुजफ्फरनगर में दंगा अच्छी बात नही थी। तो आपका जवाब- जब मोपला हुआ, तब तुम कहाँ थे। अरे 1984 पर क्यों चुप हो?? 

बहस 1984 ओर जा चुकी है। मुजफ्फरनगर छूट गया। 
एक और उदाहरण देखिए। 

एक: मुझे लगता है कि टी.वी. के ऊपर भी सेंसरशिप होनी चाहिए, बच्चों पर ग़लत असर पड़ रहा है बिग बॉस का.
दूसरा: तुम जैसे लोग ही ‘अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता’ के लिए खतरा हैं.

अब जो बात बिग बॉस की सेंसरशिप पर होनी चाहिए थी वो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर होगी। आप ऑफेंस में थे, डिफेंस में आ गए। 

इलाज??? अरे, जुतिया के भगाइये
सिंपल
~~~~~~
4- फाल्स डिलेमा, या ब्लैक एंड व्हाइट फॉलसी

◆ तुमको मोदी पसंद नहीं, पाकिस्तान चले जाओ
◆ जो भ्रस्ट है, उसे मोदी से कष्ट है। 

ब्लैक एंड वाइट फॉलसी के शिकार कुतर्की को लगता है कि दो ही विकल्प हैं। जबकि ऐसा नहीं होता। 

मोदीभक्त न होने का मतलब #देशद्रोही होना नहीं होता। लेकिन ऊपर के उदाहरण में ऐसा लगता है कि दुनिया में दो ही लोग है – पहला जो ईमानदार हैं, मोदी को पसंद करते हैं दूसरे जो देशद्रोही हैं, करप्ट हैं। 

अब यदि हम पापा से कहें कि – ‘मुझे बी.टेक. नहीं करना ‘और पापा कहें कि – ‘तो क्या बेरोजगार रहेगा?’ तो पापा की बातें फॉलस डिलेमा का शिकार हैं। क्यूंकि बी.टेक. करने का मतलब शायद रोज़गार मिल जाना होता भी हो, तो भी बी.टेक. नहीं करने का मतलब बेरोज़गारी तो कतई नहीं। 

कोई भी जाने-अंजाने इसका प्रयोग करता है वो ये मानता है कि दुनिया में दो ही विकल्प हैं। काला या सफेद। उसे रेनबो का नही पता।

इलाज? जुतिया के भगाइये
(अगर वो बाप नही है तो)
~~~
5– ऑथरटेटिव फॉलसी

◆ जिसके होठ पर तिल होता है, वह स्त्री चरित्रहीन होती है (चाणक्य)
◆ नेहरू भगतसिंह से मिलने तक नही गए - (मोदी जी)
◆ नरेंद्र मोदी इज लास्ट बेस्ट होप ऑफ द अर्थ-(न्यूयार्क टाइम्स)

किसी उच्च अधिकार प्राप्त, सम्मानित के मुख से निकला झूठ, या उसके नाम से फैलाया गया झूठ। 

आप अक्सर उल्टे सीधे कोट किसी इज्जतदार आदमी के नाम से, उसके फोटो की व्हाट्सप स्लाइड में आते हैं। आपको इन सब बातों में क्यूं विश्वास हो जाता है? क्यूंकि ये किसी ‘विशेष व्यक्ति’ ने कहा है, जिस पर आपकी श्रद्धा है। 

लेकिन क्या विशेष व्यक्ति के कह देने से वो बात सत्य हो जाएगी?

इज्ज़तदार व्यक्ति में और विशेषज्ञ व्यक्ति में अंतर होता है। आप किसी की इज्ज़त करते हैं या पूरा समाज किसी की इज्ज़त करता है, इसका मतलब ये नहीं कि उसकी सारी बातें भी सही हों, किसी तर्क में यूज़ की जाएं। 

राम के नाम पर फैलाई जा रही नफरत इसी का उदारहण है। गीता के श्लोक से लोगो को हिंसा के लिए प्रेरित करना भी यही fallacy है। 
~~~
इलाज वही है। जुतिया कर भगाइये। ये कोढ़ हैं, पातकी हैं, इंफेक्शन हैं। न भगाया, तो इसमें डूब जाएंगे। अब तक अगर डूब न चुके हो तो। 

वैसे भी श्रीकृष्ण ने कहा है

सुख दुःखे समे कृत्वा, लाभालाभौ जयाजयौ
ततो युद्धाय युज्यस्व, नैवं पापमवाप्स्यस
 
हे पार्थ। जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दुःख को समान करके इस पोस्ट को फारवर्ड कर। 

इसे कॉपी पेस्ट कर बिना क्रेडिट अपनी वाल में चेपने से तू पाप का भागी नही होगा।
किसी दूसरे का व्यंग्य शेयर करना व्यंग्यकार की बेइज्जती होती है, पर कई बार करने के अलावा चारा नहीं होता।

शाबाश डॉक्टर 'पथिक' 

आधी रात को एक चोर एक घर में घुसा। 
चोर ने नकाब पहना हुआ था।
कमरे का दरवाजा खोला तो बरामदे में एक बूढ़ी औरत सो रही थी,खटपट से उसकी आंख खुल गई।
 
चोर ने घबरा कर देखा तो वह बुढ़िया लेटे लेटे बोली, ''बेटा, तुम किसी भले घर के आदमी लग रहे हो, लगता है किसी परेशानी से मजबूर होकर इस रास्ते पर लग गए हो। चलो कोई बात नहीं। अलमारी के तीसरे बक्से में एक तिजोरी है। इस का सारा माल तुम चुपचाप ले जाना। मगर पहले मेरे पास आकर बैठो, मैंने अभी-अभी एक ख्वाब देखा है। वह सुनकर जरा मुझे इसका मतलब तो बता दो।"

चोर उस बूढ़ी औरत की रहमदिली से बड़ा अभिभूत हुआ और चुपचाप उसके पास जाकर बैठ गया।
बुढ़िया ने अपना सपना सुनाना शुरु किया, ''बेटा, मैंने देखा कि मैं एक रेगिस्तान में खो गइ हूँ। ऐसे में एक चील मेरे पास आई और उसने 3 बार जोर जोर से बोला चौकीदार! चौकीदार! चौकीदार! बस फिर ख्वाब खत्म हो गया और मेरी आँख खुल गई। जरा बताओ तो इसका क्या मतलब हुआ?''

बुढ़िया शातिर थी।
उसने सोचा कि उसकी आवाज सुनकर सोसाइटी का चौकीदार आ जायेगा और उसे बचा लेगा।

पर कोई नही आया।

क्योंकि जो चोर था दरअसल वही उस सोसाइटी का चौकीदार था।
चौकीदार ही चोर था मित्रों।

फिर उस चोर ने सुकून से चोरी की और ज्यादा श्यानपंती दिखाने के जुर्म में बुढ़िया को 2 झापड़ भी मारे।

sunil jayjaniya ki kalam se 29/03/23

ईश्वर के सामने एक मनुष्य 🧔भूख से मर कर पहुंचा फिर,
एक कुत्ता 🐕 भूख से दीवार फॉद कर खाना खा रहा था उसे डंडा मारा गया और वह भी मर कर ईश्वर के सामने पहुंचा.....
इसके आगे हरिशंकर परसाई ने लिखा है :-

वे बोले ," मुर्ख कायर ; तू कुत्ते से भी हीन है । 
बेचारा कुत्ता दीवार को लांघकर घुस गया और खाना खा आया । 

और तू आदमी कहलाने वाला हाय हाय कर के मर गया । 
तू दीवार लांघ सकता था ? दीवार तोड़ नहीं सकता था ? 
'लेकिन भगवन! " मैंने कहा ," मैं दीवार कैसे तोड़ता ? यह पाप न होता ? "

भगवान ने क्रोध से कहा ," पाप पुण्य के चक्कर में पड़ने वाले कायर ! वह दीवार क्या मेरी बनाई हुयी है ? तमाम दीवारें इंसान ने खड़ी की है । और तू उन्हें तोड़ने में पाप पुण्य का विचार कर रहा है ? 

मुर्ख ! तेरा कुत्ता तुझसे ज्यादा समझदार है । वह घुस गया , खाना खाया और डंडे की मार से मरकर यहाँ आ गया । 

उसमे मनुष्यत्व है, तुझमे पशुत्व भी नहीं है । 
मैंने तुम्हे बुद्धि दी है ; हाथ पैर दिए है , - और तू अकर्मण्य , बुजदिल कीड़े सा मर गया । 

मनुष्यों ने मुझे बहुत निराश किया है,
अब मैं कुत्ते ही कुत्ते निर्माण करने की सोच रहा हूँ !

- #हरिशंकर_पारसाई 
Himanshu Kumar ji के वॉल से पोस्ट
क्या आपने कभी सपरीवार,  
किसी धरना प्रदर्शन मे शिरकत किया है???

नारे लगाए, जुलूस मे पैदल चले, पुलिसिया बूटों और लाठियों के सामने से मुठ्ठियां उछालते इंकलाबी आवाज उठाई ?? 
●●
मै पार्टी कार्यकर्ताओं से राजनैतिक कार्यक्रम या पूड़ी-500 वाली रैली की बात नही कर रहा। 

इजराईल मे नेतान्याहू ने ज्यूडीशियरी को कन्ट्रोल करने की कोशिश की। जनता सड़को पर उमड़ आई, अब नेतान्याहू बैकफुट पर हैं। कभी टयूनिशिया से अरब स्प्रिंग ने मध्यपूर्व की राजनीति बदल दी थी। अपनी जिंदगी मे मैने वैश्विक स्तर पर कई इवेन्ट देखे हैं। 

भारत मे वह चेतना नहीं दिखती। 
●●
आप असहमत हो सकते हैं। भारत मे जेपी का आंदोलन, और अन्ना आंदोलन को गिना सकते है। मगर ध्यान से देखा जाए, तो जेपी आंदोलन तब के विपक्ष की अगुआई मे हुआ था। अन्ना आंदोलन भी, हैण्ड इन ग्लव, संघ का प्रायोजित, फण्डेड और मीडिया के सहारे खड़ा हुआ आंदोलन था। 

मौजूदा दौर मे सीएए को लेकर शाहीन बाग, और किसान आंदोलन को कुछ हद तक इस कैटगरी मे ले सकते है। मगर यह मुख्यतः पीड़ित समुदाय का स्वहितरक्षा के सीमित मुद्दे पर आंदोलन ही था। 
●●
इमरजेंसी के पहले तो खूब बमचक हुई। लेकिन इमरजेंसी लग जाने के बाद- एकदम सुन्न सपाट.... 19 महीने  कोई आंदोलन नही हुआ। इंदिरा ने स्वेच्छा से ही इमरजेंसी हटाई। 

राम मंदिर आंदोलन और संघ के गौरक्षा जैसे आदोलन तो कहीं से भी संवैधानिक मूल्यों और उत्तम प्रशासन, या नीतियो के लिए नही थे। ये हूलीगन्स का, हूलिगन्स के लिए, हूलिगनिज्म के प्रसार हेतु आंदोलन था। 

उन्होने किया, फायदा लिया। 

निर्भया के मामले मे इंडिया गेट पर कैण्डल जलाने वालों की भीड़ फैशनेबल थी। तब सरकार से डर नही लगता था, सो निकल गए। लट्ठ रॉड लेकर पुलिस और ट्रोल खड़े होते, तो एक न निकलता। 

वैसे तो लाठी खाने को शिक्षक, सरकारी कर्मचारी भी निकलते है, हड़ताल, जुलूस करते है। पर इसमे इमिडियेट निजी हित होता है। पैलेट गन लेकर पुलिस सामने खडी हो, तो आम हिंदुस्तानी इजराइल की तरह अपनी न्यायपालिका की स्वायत्ता, लोकतंत्र की रक्षा जैसे गूढ मसलों प्रदर्शन करने को आने खोल से कतई बाहर न निकले। 
●●
तभी फयूहरर से मिलने गए सुभाष के सामने भारत की खिल्ली उड़ाई गई - "कुछ लाख अंग्रेज 200 साल से 40 करोड़ भारतीयों पर राज कर रहे हैं,.. लानत है। "

हांलांकि 20 साल की लंबी राजनीतिक शिक्षा से, गांधी ने कुछ पुंसत्व जगाया था। इसका फायदा मिला उन्हे, 1942 मे जब सारी कांग्रेस लीडरशिप जेल मे थी। तो भारत छोड़ों आंदोलन आम लोगो ने अपने बूते चलाया। इस आंदोलन ने एटली को भारत से पिंड छुड़ाने को मजबूर किया। 

लेकिन आजादी के बाद कीे पीढ़ियों को नर्म, गुदगुदा लोकतंत्र मिला। बहुत हुआ तो अगले चुनाव मे उसकी सजा दे देते। शनै शनै लोकतंत्र का मतलब, अगले चुनाव का इंतजार करना हो गया।
●●
और फिर होता यह है कि 5 साल कुढ़ने के बाद जब बटन हाथ मे आता है, तो पुलवामा, मुसलमान, जाति और एडविना के नाम वोट डाल आते हैं। अपने मुद्दो मे, अधिकारो, संविधान के मूल ढांचे मे हेरफेर जैसे मसलों की समझा नहीं। और सबसे बड़ी बात - आदत नही। 

धरना, मोर्चा, प्रदर्शन नेतागिरी का पर्याय है, और नेतागिरी कोई अच्छी बात नहीं। हममे से अधिकांश लोगों को पब्लिक स्पीकिंग का अनुभव नहीं। विचारधारा और दृढता नहीं। प्रशासन और उसके दायरे की समझ नहीं। 

माहौल और हवा के साथ बहते हैं। सड़क पर नारा लगाने मे शर्म आती है- कोई देखेगा, तो क्या कहेगा ??? इस तरह ग्रूम किया व्यक्ति, उससे बना समाज अपनी आजादी खोने के लिए अभिशप्त है। इसमे आरएएसएस, मोदी या भाजपा को दोष नहीं। ने तो बस, हमारी रीढहीनता का फायदा उठाया है।

खैर, बात बहक गई ...मै पूछ रहा था ..
क्या आपने , कभी धरना प्रदर्शन मे शिरकत की है???
क्या दुनिया के दूसरे नम्बर के रईस. अडानी नही, 
मोदी थे.. ?? 

क्या दिनोदिन दौलत, असल मे भाजपा की घट रही है?? राहुल की प्रेस कॉन्फ्रेंस का आखरी हिस्सा सुनिये- 

"आप इसलिए अडानी जी को प्रोटेक्ट कर रहे हो, 
क्योकि आप ही अडानी हो..."
●●
राहुल की मानें तो मामला एकदम साफ हो गया। 

हिंडनबर्ग ने दरअसल भाजपा और खासकर मोदी की नियंत्रित दौलत पर चोट की है। वो दौलत, जो एक विशाल पार्टी को चलाने, उसके साल भर चलने वाले महंगे अभियानों के खर्च उठाने, विधायक,-सांसद, मीडिया, अफसर, जजो को खरीदने अथवा उनको धमकाने के लिए प्रयोग हो रही है। 

140 करोड़ जनता को दौलत के जूते तले मसलकर, सत्ता पर आजीवन नियंत्रण के लिए, जूता बड़ा होना जरूरी है। तो इसीलिए उसका आकार, सारे जोखिम लेकर भी बढाया गया। 
●●
किसी नॉवल मे पढा था, एक अफसर रिश्वत नही लेता। लेकिन ग्राहक से कहता है, फलॉ अनाथालय को इतना दान दे दो। अंत मे मालूम होता है .. असल मे अनाथालय संचालक, उस अफसर का भाई है। 

रिश्वत के पैसों से दोनो मिलकर मौज करते है। 

अब अडानी अपना व्यवसाय तो कर रहे हैं, मगर असल मे भाजपा के मुंशी हैं। उनका तंत्र मोदी और भाजपा के पैसे घुमाने, सेफ रखने, वाले अमानतदार की भूमिका निभा रहा है, ऐसा राहुल का आरोप आभास देता है। 
●●
क्या राहुल का कहना है कि अडानी, सिर्फ हैण्डलर हैं, पैसा भाजपा का है, उसके नियंत्रण में है ? क्या इसलिए भारत की पूरी राजव्यवस्था, वित्त नीति, विदेश नीति, रक्षा नीति, अडानी ग्रुप की जेब भरने में लगी है?? 

क्या मोदी का धन प्रबंधन यह इस ग्रुप का असली काम है। क्या तमाम धन्धे, दिखावटी है। अधिकांश घाटे में हैं, कुप्रबंधन में है। यह तो सच है कि कोई आम एसआइपी या म्युचुअल फंड मैनेजर, अडानी मे इन्वेस्टमेण्ट नहीं करता। 

मगर आश्चर्यजनक रूप से EPFO और LIC करते हैं। और दुनिया भर मे फैली ऐसी शेल कंपनियां करती हैं, जिनके मालिकों का पता नही, पते, बिजनेस और पैसे के स्रोत का पता नही !!!
●●
पैसा भाजपा की ताकत है। राहुल ने अडानी पर हमला किया है। मौजूदा सत्ता प्रणाली के लिए  सीधे सीधे लाइफलाइन पर हमला है। राहुल समझ चुके हैं कि अडानी का पैसा खत्म, मोदी का चमत्कार खत्म। 

इसलिए राहुल अडानी के पीछे नही पड़े, वो मोदी की नाभि पर सीधे निशाना लगा रहे हैं। भाजपा बौखलाई हुई है। 

वह अडानी को नही, खुद को बचा रही हैं। 
●●
राहुल ने साफ साफ कह दिया है कि अडानी मुखौटा है। उसका पैसा, सरकारी से करप्शन का पैसा है। जब आप यह समझ जाएंगे, मौजूदा तूफान की कहानी समझ आ जायेगी।
पेज का नाम स्वतंत्र क्यो??

तो किस्सा 1919 का है दोस्तों। आप जानते है, इस समय महावीर सावरकर ने जबरदस्त माफी क्रांति की थी। एक के बाद एक, दनादन टॉमहॉकमाफी मिसाइल छोड़ रहे थे। 

अंग्रेजो का मनोबल टूट गया था। विक्टोरिया माता, चरणों मे गिरते माफीबमों से सहम चुकी थी। 
●●
ऐसे मौके का फायदा उठाकर, एक साधारण अपढ़ नेता, जिन्होने लंदन से बार एट लॉ, बैरिस्टरी और एटोर्नी नही की थी, और जो बाम्बे और लन्दन बार क्लब के मेम्बर भी नही थे, उन्होने असहयोग आंदोलन छेड़ दिया। 

बड़े बड़े जब पेंशन के ख्वाब देख रहे थे ..

बच्चा बच्चा उस आंदोलन मे कूद पड़ा।  एक बच्चा बनारस मे भी पकड़ा गया। जोर जोर से नारे लगा रहा था। पुलिस पकड़ ले गई। कोर्ट मे पेश किया गया। 

- जज ने पूछा- तेरा नाम बता 
- आजाद ...
- बाप का नाम ??
- स्वतंत्र ..
- पता ??
- जेलखाना !!

मजिस्ट्रेट को गुस्सा आया। लेकिन आरोपी माइनर था। 15 डण्डे मारे गए। हर नारे के साथ वो नारा लगाता

- भारत माता की जय 
- महात्मा गांधी की जय 

अफसोस, उसने माफीवीर की जय एक बार भी नही कहा, 
वामपंथी रहा होगा। 

खैर, तो वो बच्चा आगे लेजेण्ड बना। भगतसिंह, सुख्रदेव, राजगुरू, यशपाल, अशफाक और जोगेश चंद्र जैसे वीरो का कंपनी कमांडर। नाम था चंद्रशेखर तिवारी .. 

हम यूपी वालों की आन बान शान। 
क्योकि तब यूपी गोबरपट्टी था, गोबरमति न था।  
●●
तो डण्डे खाकर जो गांधी की जय कहे, वही आजाद है। जिसकी पीठ पर बरसते कोड़े, उसकी जुबान को ताकत दें, वो आजाद है, वही स्वतंत्र है। 

जलीले इलाही की जुल्मतों के दौर मे, कोड़ों की परवाह किये बगैर, आप और मै दिल की सुनेंगे, लिखेंगे, बोलेंगे, डिस्कस करेंगे। अहसास करेंगे कि जब तक मन आजाद है, जुबान आजाद है, तब तक हम सारे स्वतंत्र है। 
●●
मेरा विश्वास है कि फेसबुक के बाजार की मेरी गली मे, स्वतंत्रमना जीवों का जमघट है। इसलिए, डियर, इस दीवार, चौखट, 

.. इस पन्ने का नाम स्वतंत्र है।

manish ki kalam se

स्वागत, नमस्कार, ढेर सारा प्यार 
और भक्तो को टुईं !!! 

पिछला पेज उड़ गया। नश्वर फेसबुक जीवन मे, इस पेज के उडने तक ठिकाना यहीं है। अगर आपको मेरी तरफ से पेज इन्वाइट गया है, तो इसका मतलब आप दिल के करीब हैं, खास है, खासुलखास है, हमदर्द है। 

यह भी संभव है कि आपके सरदर्द है। तो ठीके है, 
एक्सेप्ट द रियलिटी ..
●●
पेज का नाम पुनः वही पुराना रख सकता था, या कोई रिबोर्न मार्का नाम भी चलता। पर स्वतंत्र इसलिए कि, अकेले नही लिखूंगा। कुछ और भी साथी होंगे, उन्हे भी एक्सेस दूंगा। 

दायरा और भी बढाना चाहूंगा। ये काम सबके साथ तो होगा नही। तो इनबॉक्स विधी अपनाई जाएगी। आप भी अपना लिखा इनबॉक्स कर दें। दूसरो का लिखा, चुराया मुराया भी इन्बॉक्स कर दें। 

खूब विलंब और 99 प्रतिशत इग्नोर की गांरटी के साथ 1 प्रतिशत पब्लिश करने का जिम्मा लेता हूं। शर्त यही, कि जो भी आप स्वतंत्र पर डलवाना चाहें, लार्जर इन्ट्रेस्ट की बात हो, सेंसफुल हो। 

तटस्थ न हो। 
●●
तटस्थ मुर्दे होते है, जो लहरों के साथ फ्लोट करते हैं। सुसरे धारा के साथ चलने का भी अफर्ट नही लगाते। हम तटस्थ नही है। 

सत्य के पक्षधर हैं। 
स्वतंत्र है... आप, मै, हमारी आवाज स्वतंत्र है। 
स्वतंत्र रहेगे। 

कोई घण्टा, हीरा का लाल, हमारी आजादी नही छीन सकता

web series reivew : 1962: The War in the Hills Review, Hotstar Review

 

6 out of 10 


1962में, के रेजिमेंट के मेजर सूरज सिंह ने सीमा से महत्वपूर्ण खुफिया जानकारी हासिल की। इस बीच, उसकी यूनिट के सैनिक दोस्ती, प्यार, प्रतिद्वंद्विता और शादी से निपटते हैं। 


 चीन भारतीय युद्ध में १२६ भारतीयों ने ३००० दुश्मन सैनिकों के खिलाफ एक रणनीतिक पास का बचाव किया। यह निडर साहस की लड़ाई थी, आखिरी गोली तक लड़ी

web series reivew :Criminal Justice season 1 Review, Hotstar Review

 

5 star out of 10 


 क्रिमिनल जस्टिस, हॉटस्टार स्पेशल्स के लिए एक भारतीय हिंदी भाषा की क्राइम थ्रिलर लीगल ड्रामा वेब सीरीज़ है, जो 2008 में इसी नाम की ब्रिटिश टेलीविज़न सीरीज़ पर आधारित है,  जिसे श्रीधर राघवन ने लिखा था और इसका निर्देशन तिग्मांशु धूलिया और विशाल फुरिया ने किया था। पंकज त्रिपाठी, विक्रांत मैसी, जैकी श्रॉफ, अनुप्रिया गोयनका और मीता वशिष्ठ अभिनीत, कहानी आपराधिक न्याय प्रणाली के माध्यम से एक भयानक यात्रा पर व्यक्तियों के जीवन का अनुसरण करती है।

क्रिमिनल जस्टिस एक थ्रिलर सीरीज है, जिसमें पंकज त्रिपाठी, विक्रांत मैसी, जैकी श्रॉफ, अनुप्रिया गोयनका, मीता वशिष्ठ, रूचा इनामदार, जगत रावत, रितुराज सिंह, तुहिना वोरा ने अभिनय किया है। श्रृंखला इस बात पर केंद्रित है कि कैसे सनाया रथ (मधुरिमा रॉय द्वारा चित्रित) की हत्या के लिए झूठे आरोप लगाने के बाद आदित्य शर्मा (विक्रांत मैसी द्वारा चित्रित) का जीवन बदल जाता है। श्रृंखला को 10 एपिसोड में विभाजित किया गया है।

5 अप्रैल 2019 को हॉटस्टार के माध्यम से आपराधिक न्याय जारी किया गया था।इसे मुख्य पात्रों, त्रिपाठी, मैसी और श्रॉफ के क्रमशः अभिनय की प्रशंसा करते हुए आलोचकों से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली। फरवरी 2020 को, निर्माताओं ने दूसरे सीज़न की घोषणा की, जिसका शीर्षक था क्रिमिनल जस्टिस: बिहाइंड क्लोज्ड डोर्स, जिसे डिज़नी + हॉटस्टार के माध्यम से 24 दिसंबर 2020 को रिलीज़ किया गया था। 

web series reivew : Hostages season 1 Review, Hotstar Review

 

                                                5 star out of 10


 सर्जन डॉ मीरा आनंद (टिस्का चोपड़ा) मुख्यमंत्री पर एक नियमित ऑपरेशन करने के लिए निर्धारित है, लेकिन प्रक्रिया से एक रात पहले, उसके परिवार को बंधक बना लिया जाता है और उसे अपने परिवार को बचाने के लिए अपने अनजाने रोगी की हत्या करने का आदेश दिया जाता है। उसे निर्णय लेने के लिए। 


Hostages season 1, Hotstar   के लिए एक भारतीय हिंदी भाषा की अपराध थ्रिलर वेब श्रृंखला है, जो इसी नाम की एक इजरायली श्रृंखला का आधिकारिक रूपांतरण है। निसर्ग मेहता, शिवा बाजपेयी और मयूख घोष द्वारा लिखित इस सीरीज का निर्देशन सुधीर मिश्रा ने किया है। टिस्का चोपड़ा, रोनित रॉय, परवीन डबास, आशिम गुलाटी, मोहन कपूर, दलीप ताहिल अभिनीत, मल्हार राठौड़, शरद जोशी, आशिम गुलाटी, सूर्य शर्मा और अनंग्शा बिस्वास के साथ सहायक भूमिकाओं में, श्रृंखला एक प्रसिद्ध सर्जन के बारे में है, जो इसके लिए निर्धारित है परिवार को बंदी बनाने से बचाने के लिए, इस प्रक्रिया में मुख्यमंत्री की हत्या करने के लिए एक नियमित ऑपरेशन का आदेश दिया गया था।